इलाहाबाद विश्वविद्यालय की दुर्गति देखकर कलेजा मुँह को आता है : भूमिका अश्क



 "को कहि सकय प्रयाग प्रभाऊ"

सर्वप्रथम, मैं श्रीमती भूमिका द्विवेदी अश्क पत्नी स्व. श्री नीलाभ जी अश्क (सुपुत्र श्री उपेन्द्र नाथ अश्क साहब, सुविख्यात साहित्यकार) बहुत गर्व और सहज विनम्रता के साथ ये तथ्य रख रही हूँ कि इस अद्भुत गौरवशाली विश्वविद्यालय से जुड़ने वाली मैं अपने कुल की तीसरी पीढ़ी हूँ। दस साल हुये मुझे अब, दिल्ली रहते। इसके बावजूद आज भी मुझे मेरा विश्वविद्यालय तड़प तड़पकर याद आता है। ठीक वैसे ही, जैसे मेरा शहर, इलाहाबाद।


मेरी जन्मभूमि, प्रयागराज।

ददिहाल, ननिहाल, ससुराल।

सबकुछ इलाहाबाद।

बेहद फ़क़्र है मुझे मेरी उस पवित्र अभूतपूर्व ज़मीन पर, जहाँ ईश्वर ने मुझे जन्म दिया।

सम्मानित अग्रजों और प्रिय मित्रों, 134 वर्ष का लंबा सफ़र तय कर चुका हमारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय तमाम विश्वस्तरीय गौरवशाली उपलब्धियों का जीता जागता प्रमाण रहा है। क्या राजनीतिक, क्या न्यायिक, क्या प्रशासनिक, क्या साहित्यिक, क्या शैक्षणिक और क्या शैक्षिणेतर समस्त क्षेत्र में यहाँ से निकली प्रतिभाओं की दुनिया भर में तूती बोलती रही है।


"बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ,

बारम्बार मैं शीश नवाऊँ"

प्रोफेसर मानस मुकुल दास सर{ अंग्रेजी साहित्य, अट्ठारहवीं उन्नीसवीं बीसवीं सदी की महत्वपूर्ण कविताएं} , प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री सर{ आध्यात्म, श्रीमद् भगवत् गीता, उपनिषद, संस्कृत व्याकरण} , प्रोफेसर फ़ज़्ले-इमाम सर {मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर, मर्सिये}, प्रोफेसर राजेंद्र सर {प्रेमचंद, अज्ञेय, आधुनिक हिंदी साहित्य} , प्रोफेसर किश्वर जबीं नसरीन मैम {सम्पूर्ण कालिदास, भारवि, भास, बाणभट्ट, दण्डी } , प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा सर {तुलनात्मक साहित्य, रामायणम्, महाभारतम्} , प्रोफेसर मनमोहन कृष्ण सर {व्यवहारिक अर्थशास्त्र} , प्रोफेसर प्रशांत घोष सर {सैद्धांतिक अर्थशास्त्र}...


हालांकि ज़िंदगी का हर कदम, हर सफ़र, हर दिन बहुत कुछ सिखाता है और बहुत सारे अध्यापक-गण ने भी अनगिनत पाठ पढ़ाये हैं फिर भी, जब भी शिक्षक/गुरु/अध्यापक का ज़िक्र करना हो, तो मैं अपने प्रिय विश्वविद्यालय के इन गुरुजनो" का ही स्मरण करती हूँ। कोई दशक या शताब्दियाँ नहीं गुज़री जब विश्वविद्यालय का गोशा गोशा एक घर जैसा महसूस होता था। अध्ययन-अध्यापन के सर्वेसर्वा हमारे अध्यापक-वृन्द का तो कहना ही क्या, सभी कर्मचारी भी अभिभावक से कम नहीं थे। मुझे ध्यान है अंग्रेजी विभाग से एम.ए. प्रथम वर्ष का आख़िरी पर्चा देते वक़्त मुझे एक और 'बी' कॉपी की ज़रूरत थी। परीक्षा सीनेट हॉल मे हो रही थी। ड्यूटी पर तैनात परीक्षक सर को मेरी सीट तक आने में लगने वाले अन्तराल को पानी पिलाने वाले किसी कर्मचारी ने पाट दिया। सर के आते आते मैं डेढ़ पन्ना तक लिख ले गई। हालांकि बाद में मज़ाक में कहा जाने लगा, 'भूमिका ढेरों कॉपियाँ लेकर पूरा परीक्षा शुल्क वसूल लेती है..' परीक्षा केंद्र में मौजूद अध्यापक गण मुझे केंद्र में प्रवेश करता देखकर ही मुस्कुरा देते थे, कि अभी ये "बी" कॉपी की झड़ी लगा देगी। हर विभाग के समस्त कर्मचारीगण "बेटा" "बिटिया" करके पीढ़ियों को पढ़ा कर निकाल गये हैं।

मेरे पितामह वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ राम शंकर द्विवेदी जी इसी विश्वविद्यालय के स्वर्णिम दौर  में संस्कृत पढ़ाते थे। मुझे अच्छी याद है कि मेरे बाबा, उस ज़माने की क्या बौद्धिक, क्या स्तरीय और रोचक किस्सों की अनगिनत बातें बताते नहीं थकते थे। उस दौर में विश्वविद्यालय के सभी सदस्य घरेलू से थे। छात्राओं के प्रति पिता सरीखे नर्म दिल, छात्रों के लिए ऊपर से सख़्त लेकिन अन्तःस्थल से बेहद गंभीर और चिन्तित।



पितामह, पिता-माता समेत मेरा ससुराल (श्री नीलाभ अश्क जी सहित उनके बन्धु-बांधव) भी यहाँ से सुशिक्षित हुये हैं। मैंने जीवन के नौ {3+2+2+1+1} बेहतरीन साल यहाँ शिक्षा ग्रहण करने में गुज़ारे हैं.. जो कि मेरे कुल जमा दोनों परिवारों द्वारा अर्जित सुंदर समय से ज़्यादा रहे --

~बी.ए./ स्नातक 

(अंग्रेजी साहित्य, संस्कृत साहित्य, उर्दू भाषा) = तीन वर्ष

~एम. ए./ परास्नातक, (अंग्रेजी साहित्य) = दो वर्ष

~एम.ए./ परास्नातक, (तुलनात्मक साहित्य) = दो वर्ष.

~जर्मन भाषा डिप्लोमा = एक वर्ष.

~बी.एड. = एक वर्ष।

तुलनात्मक साहित्य में हम लोगों को परिसर में मौजूद समस्त छः साहित्य (हिंदी, संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी) की परस्पर तुलना करते हुये सभी साहित्यिक-विभागों के विद्वानों ने इतना समृद्ध किया, जिसकी मिसाल मुझे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययन के बाद भी न मिली। मेरे शिक्षकों की दी हुई शिक्षा के चलते ही इस विभाग में मैंने सर्वोच्च अंक हासिल किये, जो कि दिल्ली एवं ज.ने.वि. के टॉपर्स से कहीं ज़्यादा अंक साबित हुये।


मेरे पितामह (डॉ.राम शंकर द्विवेदी),

के सात साल (B.A., M.A., Ph.D संस्कृत साहित्य 2+2+3), 

पिता के सात साल (B.A., M.A. दर्शन शास्त्र, L.L.B. 2+2+3),

माता के छह साल (B.A. सितार, सस्कृत, शिक्षाशास्त्र , एवं M.A. सस्कृत, सितार 2+2+2 ),

और दिवंगत पति श्री नीलाभ अश्क जी के चार साल (B.Com, M.A. Hindi, 2+2)

यहाँ बीते। मैं अकेले ही अपने लाडले विश्वविद्यालय से बाहर (दिल्ली) आगे की शिक्षा के लिये आई, वरना परिवार में सभी ने अपनी समस्त अकादमिक शिक्षा यहीं से पाई थी। बाबा (पितामह) इन छात्रावासों के अन्तःवासी भी रहे, जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नये प्रविष्ट हुये थे, P.C.B. और A.N. Jha छात्रावासों के भी अब सराहनीय ग्रुप हैं शायद।

जिस तरह शुरुआती सालों में यहाँ मैं ख़ुद ताप्ती छात्रावास (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर) की अन्तःवासी बनी।

आंतरिक राजनीतियों के चलते, 2011 में अपने प्यारे इलाहाबाद विश्वविद्यालय को अलविदा कहना पड़ा, जब मेरा दाख़िला जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ।

इन वर्षों में मेरी 10 किताबें प्रकाशित हुईं। भारतीय ज्ञानपीठ से पहली ही पुस्तक (कहानी संग्रह "बोहनी" 2017) अनुशंसित हुई।

कई सम्मान भी मिले। लेकिन आज के इलाहाबाद का माहौल कभी-कभार जब दूषित सुनती हूँ तो मन बहुत दुखी हो आता है. जैसा कि दूर से यदा कदा अब सुनने को मिल रहा है।

तब भले ही मोची भैया, रिक्शेवाले भैया, माली या चपरासी भैया के तन पर शॉल न लपेटे जाते हों, लेकिन उन्हें तीज-त्योहार पर गले लगाकर नये कपड़े ज़रूर पहनाये जाते थे। फोटो खिंचाने की औपचारिकता पूरी करके उन्हें परिधि से बाहर नहीं किया जाता था। और तो और विश्वविद्यालय के सुंदर स्वस्थ और शानदार वातावरण में ऐसे अधिकारी, अध्यापक, प्रशासनिक तत्व कल्पनाओं से परे थे, जो महिला छात्राओं/ शिक्षकों को अपने सरकारी आवास में मुर्गा पकाने और रात्रि-विचरण के बाद नौकरियां/ प्रोन्नतियाँ बाँटते दिखाई देते हों।


शिक्षा जगत का स्तर बहुत घट गया है

"हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी

आओ विचारें बैठकर ये समस्यायें सभी .. "


कमोबेश सारे विश्वविद्यालयों के ऐसे हाल ही होंगे, लेकिन अपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय का ऐसा वीभत्स चेहरा देखकर कलेजा मुँह को आता है। हालांकि इम्क़ान तो नज़र नहीं आते, फिर भी मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का शे’र ध्यान आता है,


"कब नज़र में आयेगी,

बेदाग़ सब्ज़े की बहार.

खून के धब्बे धुलेंगे,

कितनी बरसातों के बाद..."


मैं, श्रीमती भूमिका द्विवेदी अश्क पत्नी स्व. श्री नीलाभ जी अश्क, अपने अभिभावक सदृश गुरुजनों का एक बार फिर से तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ।

सादर प्रणाम।

वो धरती, वो विश्वविद्यालय जब भी मुझे पुकारता है, 

मैं तत्काल हाज़िर होती हूँ..

आजीवन होती रहूंगी..

"जननी जन्म भूमिश्च, स्वर्गात् अपि गरीयसी" 🙏🏻🌹🙏🏻


श्रीमती भूमिका द्विवेदी अश्क

लेखिका व साहित्यकार 

पुराछात्रा इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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