यूपीएससी में हिंदी माध्यम से इतने कम परिणाम क्यों?


यूपीएससी ने जब सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम जारी किए तो हर किसी में उत्सुकता थी यह जानने की कि कौन कौन चयनित हुआ और किसने किया टॉप , यह सब जानने समझने के बीच ही यूपीएससी द्वारा जारी किए गए इस परिणाम का अध्ययन करने पर पता चला कि जो परिणाम आया है उसमें हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों का चयन ऊँट के मुँह में जीरा बराबर हुआ है मतलब 761 उम्मीदवारों में से केवल 9 उम्मीदवार चुने गए जो हिंदी माध्यम से थे। 

यूपीएससी द्वारा जारी किया गया यह परिणाम अनेको उम्मीदवारों को हजम नहीं हो रहा क्यों कि वास्तव में ये विचारणीय विषय है कि हिंदी माध्यम वाले उम्मीदवारों का इतना बुरा प्रदर्शन कैसे जबकि 2011 के पहले तक हिंदी माध्यम का परिणाम बेहद ही बेहतर आता रहा है। 

सफलता के ग्राफ की बात करें तो हिंदी माध्यम के चयनित उम्मीदवार 2013 में 17 प्रतिशत थे ,  2014 में यह आंकड़ा 2.11 प्रतिशत था , 2015 में 4.28 प्रतिशत , 2016 में 3.45 प्रतिशत और 2017 में 4.06 प्रतिशत था। हिंदी मीडियम से 2018 में चयनित उम्मीदवारों की संख्या मात्र 2.16 प्रतिशत थी और 2019 में हिंदी माध्यम से 15 चयन जो इस ओर इशारा करती है कि कुछ समस्या है जरूर और जटिल भी है।आपको बताते चलें कि   यूपीएससी ने 2011 में सीसैट पैटर्न लागू किया और 2012 में परीक्षा का पाठ्यक्रम बदल दिया और तब से हिंदी माध्यम के परिणाम पर अवश्य ही इसका असर हुआ है। 

यूपीएससी में हिंदी के गिरते ग्राफ को लेकर प्रतियोगियों का अलग अलग विचार रहा है कुछ लोग इसे राजनीति से जोड़ते हैं और कुछ यूपीएससी पर भेदभाव का आरोप लगाते हैं वहीं कुछ मेहनत और लगन की बात करते हैं तो कुछ पठन सामग्रियों की उपलब्धता को लेकर बातें करते हैं। आइये कुछ प्रतियोगियों के विचार समझें कि इनका क्या मानना है यूपीएससी में हिंदी के गिरते ग्राफ को लेकर...

दीपक चतुर्वेदी (यूपीएससी एस्पिरेन्ट) का मानना है - "भाषा के आधार पर भेदभाव यह कतई स्वीकार्य नही है जो परिणाम 2011 के पहले आते थे वे अब क्यों नही अगर प्रतिभा में कमी की बात की जाए तो यह सरासर गलत है। बुरे परिणाम आने का पहला कारण तो CSAT है जिसके लागू होने से पूर्व हिंदी माध्यम का परिणाम बेहतर था इसके बाद प्रश्नपत्र का ट्रांसलेशन इंग्लिश से हिंदी में किया जाता है कम्प्यूटर के द्वारा ये बंद होना चाहिए और प्रश्न मूलरूप से हिंदी में बनने चाहिए। उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन में अंग्रेजी को तवज्जो देना भी बुरा है और ऐसा यूपीएससी कर रही है। हमारे हिंदी भाषा के अभ्यर्थी किसी भी तरह से प्रतिभा के मामले में कम नहीं हैं और न ही अध्ययन सामग्री की कोई कमी है.."


शुभम मिश्रा (यूपीएससी एस्पिरेन्ट) कहते हैं - " यूपीएससी का रवैया भेदभावपूर्ण है जब उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन किया जाता है तो अंग्रेजी माध्यम वालों को सुपीरियर मानकर उन्हें ज्यादा अंक दिया जाता है.."


हमशूल शेख (यूपीएससी एस्पिरेन्ट) का विचार है - "अंग्रेजी माध्यम वालों के लिए बेहतर रिसोर्सेज हैं जिससे उनका परिणाम भी बेहतर है हिंदी माध्यम में प्रश्नपत्र भी कभी कभी नहीं समझ आता क्यों कि अंग्रेजी में उसका अर्थ अलग और हिंदी में अलग निकल रहा होता है.."


संकल्प सिंह (पीसीएस अधिकारी) का विचार है कि - "अभ्यर्थियों के मन में हिंदी भाषा को लेकर एक मिथ सा बना रहता है कि वे इंग्लिश वालों से कमतर हैं जबकि ऐसा बिल्कुल भी नही है , इस तरह के मिथ को मन से निकाल मेहनत की जाए तो परिणाम निश्चित ही सकारात्मक आएगा..."


रागिनी शर्मा (यूपीएससी एस्पिरेन्ट) - "CSAT के बाद से ही परिणाम गिरा है और हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों का मनोबल भी इसलिए सबसे बड़ा कारण CSAT है.."


शुभम यादव (यूपीएससी एस्पिरेन्ट) - "हिंदी माध्यम के एस्पिरेन्ट्स को आंदोलन करना चाहिए क्यों कि उनमें प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन फिर भी परिणाम इतना बुरा , भेदभाव हो रहा केवल.."


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