यूपी के इस करामाती गाँव के हर घर में एक आईएएस आईपीएस , क्या है सफलता का राज



देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में सबसे ऊपर मानी जाने वाली सिविल सेवा में चयनित होना बहुत बड़ी बात होती है , बड़ी बात इसलिए होती है क्यों कि 10 लाख के आसपास लोग इस परीक्षा को देते हैं और अंत में जाकर हज़ार से भी कम ही लोग चयनित होते हैं हाल ही में यूपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम जारी किए हैं और इसके बाद ही सिविल सेवा को लेकर चर्चाएं चरम पर हैं। आज हम आपको एक ऐसे करामाती गाँव के बारे में बताने वाले हैं जहाँ के हर घर में एक आईएएस , आईपीएस या पीसीएस अधिकारी हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 240 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में एक गांव है 'माधोपट्टी' अब खाशियत यह है कि गाँव के लगभग हर घर में एक आईएएस या आईपीएस है या पीसीएस अधिकारी है । इस करामाती गाँव को लेकर कहा जाता है इस गांव में सिर्फ आईएएस और आईपीएस अफसर ही जन्म लेते हैं। पूरे जिले में इसे अफसरों वाला गाँव कहते हैं। इस गांव में महज 75 घर हैं और गौर करने वाली बात यह है कि गाँव में केवल 47 आईएएस अधिकारी हैं जो उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में सेवाएं दे रहे हैं। इस बेरोजगारी के समय में भी माधोपट्टी गाँव के लोग रोजगार को लेकर एकदम निश्चिन्त हैं। यहाँ की धरती पर पैदा हुए बच्चे, इसरो, भाभा रिसर्च, मनीला और विश्व बैंक तक में अधिकारी हैं। सिरकोनी विकास खण्ड का यह गाँव देश के दूसरे गाँवों के लिए एक रोल मॉडल है।
  
माधोपट्टी गाँव के लोगों में प्रतियोगी परिक्षाओं में आने की होड़ अंग्रेजों के जमाने से ही शुरू हो गई थी जब वर्ष 1914 में गाँव के युवक मुस्तफा हुसैन पीसीएस में चयनित हुए थे। इसके बाद 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की 13वीं रैंक में चयन हुआ। इन्दू प्रकाश के चयन के बाद गांव के युवाओं में आईएएस-पीसीएस के लिए होड़ मच गई। आपको बताते चलें कि इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे हैं।
  
इंदू प्रकाश के बाद गाँव में एक अनूठा कीर्तिमान बना गाँव के ही चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर एक रिकॉर्ड बना डाला। 1955 में देश की इस सर्वक्षेष्ठ परीक्षा पास करके विनय सिंह आईएएस बनें और आगे चलकर बिहार के प्रमुख सचिव बने। इसके बाद वर्ष 1964 में इनके दो सगे भाई छत्रपाल सिंह और अजय सिंह एक साथ आईएएस के लिए चुने गए।
  
अब बारी थी चौथे भाई शशिकांत सिंह की जो वर्ष 1968 आईएएस अधिकारी बने। इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की जो टॉपर्स की श्रेणी में आए। इस परिवार का यह रिकॉर्ड आज तक कायम है।
  
अफसरों वाला गाँव कहने पर यहां के लोग गदगद हो जाते है। माधोपट्टी के डॉ. सजल सिंह बताते हैं, "ब्रिटिश हुकूमत में मुर्तजा हुसैन के कमिश्नर बनने के बाद गांव के युवाओं को प्रेरणास्त्रोत मिल गया। उन्होंने गांव में जो शिक्षा की अलख जगाई वो आज पूरे देश में नजर आती है"...
  
 
बहू बेटियाँ भी इस दौड़ में आगे -
 
युवकों के साथ यहाँ की बेटिओं और बहुओं ने भी गाँव का मान बढ़ाया है और यह शाबित किया है कि महिलाएं भी सक्षम है उस मुकाम तक पहुँचने में जहाँ पुरूष पहुँच सकते हैं। आशा सिंह 1980 में, उषा सिंह 1982 में, कुवंर चंद्रमौल सिंह 1983 में और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 में, इन्दू प्रकाश सिंह के बेटे अमिताभ 1994 आईपीएएस बने तो उनकी पत्नी सरिता सिंह ने 1994 में आईपीएस चुनीं गईं।
  
 
पीसीएस अधिकारियों की फैक्ट्री है यहाँ -

पीसीएस अधिकारियों की तो यहाँ फैक्ट्री ही है। इस गांव के राममूर्ति सिंह, विद्याप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह और उनकी पत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह और उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह का नाम शामिल है। 2013 में गाँव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास करके गांव को सुर्खियों में बनाए रखा।
  

आईएएस , आईपीएस ही नहीं और भी हैं कारनामें -

अफसर बनने के साथ दूसरे पेशों में गाँव के युवक-युवतियां नाम रौशन कर रहे हैं। अमित पांडेय केवल 22 वर्ष के हैं लेकिन इनकी लिखी पांच किताबें 2015 में प्रकाशित हो चुकी हैं। इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्व बैंक मनीला में, डॉक्टर निरू सिंह लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो में सेवाएं दे रहे हैं। यहीं जन्में देवनाथ सिंह गुजरात में वरिष्ठ अधिकारी हैं।


क्या है सफलता का राज -

इस करामाती गाँव के सफल हुए लोग अपनी सफलता का श्रेय अपने जुनून को देते हैं और कहते हैं कि सही रणनीति , कड़ी मेहनत के साथ साथ एक जुनून की सबसे ज्यादा जरूरत होती है जो आपको अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देता। गाँव में हर कोई सफल इसलिए है क्यों कि सभी ने जुनून के साथ अपनी तैयारी को एक नया आयाम दिया। होड़ होने के कारण भी सफलता का स्तर बहुत ऊपर गया है क्यों कि यह भावना बहुत ज्यादा फायदा देती है कि अगर वो कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं...


साक्षरता का स्तर काफी ऊपर -

जहाँ उत्तर प्रदेश में शिक्षा का स्तर बहुत कमजोर नज़र आता है वहीं इस गाँव में साक्षरता का स्तर काफी ऊपर है यहाँ लगभग गाँव का घर सदस्य कमसेकम ग्रेजुएट है। शिक्षा का स्तर भी इस गाँव के लिए वरदान बना है और यह भी स्वयं में रिकॉर्ड ही है।


क्या मिलती है सीख -

गाँव के सफल लोगों के अनुसार सफलता के लिए सबसे आवश्यक है जुनून का होना और जुनून के साथ ही कड़ी मेहनत अगर आप ये दो चीजें कर सकते हैं तो आप सफल होंगे इसकी पूरी गुंजाइश है।
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