इलाहाबाद विश्वविद्यालय की शाखाएँ अपने सामाजिक, राजनीतिक व न्यायिक व हर उत्कृष्टता में एक आयाम स्थापित करती हैं। यही वजह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुराछात्र ने राष्ट्रपति तक का भी सफर तय किया है। बहरहाल आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुराछात्र व देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का पुण्यतिथि हैं। आइए एक झलक डालते हैं उनकी जीवनी पर।
राजा नहीं फ़कीर है देश की तक़दीर है -
एक राजा के घर पैदा होकर फ़कीर के रूप में विख्यात हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म इलाहाबाद के डैया रियासत में 25 जून 1931 को हुआ था। इनके पिता राजा भगवती प्रसाद सिंह थे। मांडा रियासत के राजा बहादुर राम गोपाल सिंह ने इन्हें गोद ले लिया।
अपनी प्राथमिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर प्राप्त करने के उपरांत इनका दाखिला सेंट मेरिज कॉन्वेंट स्कूल इलाहाबाद में हुआ। इसके बाद इलाहाबाद ब्वॉयज स्कूल में इन्होने पढ़ाई की फ़िर यह वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज पढ़ने चले गए। वहां 1947-48 में छात्रसंघ के अध्यक्ष बने। छात्र राजनीति का बीजारोपण यहीं से शुरू हुआ। उदय प्रताप कॉलेज के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विधि से स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया।
जब विश्वनाथ प्रताप सिंह विश्वविद्यालय पहुंचे तो उनके भाई संत बख्श सिंह अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रहें थे। वो पहले ऐसे अध्यक्ष थे जो अंडर ग्रेजुएट थे। उन्हीं दिनों की घटना है। सीनेट हॉल में कोई सभा हो रही थी। वी पी सिंह वहां सुनने पहुंचे तो छात्रसंघ के किसी छात्र ने उन्हें हटा दिया। तब उन्होंने ठान लिया कि वो भी विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव लड़ेंगे।
उन्होनें 1949 में यूनियन के उपाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा और विजय श्री प्राप्त की। उस समय यूनियन के अध्यक्ष काशी नाथ मिश्र थे। इनकी अनुपस्थति में वी पी सिंह ने डेढ़ महीने अध्यक्ष पद का निर्वहन भी किया।
भारत के 8वें प्रधानमंत्री बनें विश्वनाथ प्रताप सिंह और नवें प्रधानमन्त्री बने चन्द्र शेखर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में समकालीन थे। वीपी सिंह चन्द्र शेखर को अपना बड़ा भाई मानते थे।
छात्र राजनीति से निकलने के बाद वीपी सिंह कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए। 1969 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। 1971 में लोकसभा सदस्य बनें।1974-76 तक इन्होंने केंद्रीय वाणिज्य उपमंत्री के रूप में कार्य किया। 1976 -77 में वाणिज्य राज्य मंत्री रहें।
1980-82 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहें। उसके बाद 1983 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए। राजीव गांधी की सरकार में इन्होंने वाणिज्य, वित्त और रक्षा विभाग संभाला। इसी कार्यकाल के दौरान बोफोर्स तोप की खरीदारी के मामले में दलाली देने से संबधित आरोप राजीव गांधी की सरकार पर लगे। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसके बाद पद से इस्तीफा दे दिया। और इन्हें कॉन्ग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
1988 में इन्होंने जन मोर्चा पार्टी का निर्माण किया। उसके बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस बहुमत जुटा नहीं पाई तब जनता पार्टी सहित कई पार्टियों के समर्थन से वी पी सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए। 2 December 1989 – 10 November 1990 तक प्रधानमन्त्री पद पर बने रहें। अपने कार्यकाल के दौरान मात्र कुछ ही फ़ैसले ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद बने। इन्होंने मंडल कमिशन कि रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ी जातियों को केंद्रीय नौकरियों में आरक्षण देकर पिछड़ों के नेता बनने का असफल प्रयास किया। इनके निर्णय को भारत में जातीय विभाजन की नीव को स्थापित करने वाला माना जाता है।
जब लाल कृष्ण आडवाणी की कमंडल यात्रा को बिहार में रोक कर लालू प्रसाद ने उन्हें गिरफ्तार कर किया तो नाराज भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया और इनकी सरकार गिर गई।
बाद के वर्षों में यह राजनीतिक रूप से हासिए पर चले गए। सामाजिक न्याय और वंचितों की आवाज को उठाते रहें। कुछ समय बाद यह कैंसर जैसी गंभीर रोग के शिकार हो गए। 27 नवंबर 2008 को दिल्ली के ऑपोलो अस्पताल में इनका निधन हो गया। अपने जीवन के ऐतिहासिक निर्णय के बाद भी अपने जीवन के उच्चतम और निम्नतम अवस्था में गुजारा करने वाले नायक का निडर होकर फैसले लेने की क्षमता अविस्मरणीय रहेगी।