कल यानि 8 नवंबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह होने जा रहा है जो कि लगातार विवादो मे घिरा रहा है। आखिरी दिन भी छात्र-छात्राओ ने इविवि प्रशासन से सवाल पूछा है कि कल दीक्षांत समारोह है या शिल्प हाॅट। आइए जानते है छात्रों ने इन बातों को किस आधार पर कहा है।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद कहते थे कि "जो सिध्दांतों में गलत हो वो व्यवहार में सही कभी हो ही नहीं सकता" तो जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस मूल आधार जिस पर किसी भी संस्थान का दीक्षांत खड़ा होता है को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के परिप्रेक्ष्य में अवैधानिक मान लिया तो क्या 8 नवम्बर को जो होगा वो बस एक प्रदर्शनी नहीं होगी?
आखिर आपको बताते हैं कि क्यों सिर्फ विश्वविद्यालय के लोग ही नहीं इलाहाबाद के आमजनमानस की नज़र में भी दीक्षांत हाथी के दाँत से ज्यादा कुछ और नहीं.....
● चाहे वो जेएनयू हो, जामिया हो, एएमयू हो या फिर दक्षिण भारत का अन्ना विश्वविद्यालय , कमोबेश हर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत में महामहिम राष्ट्रपति जरूर शामिल होते हैं लेकिन आखिर ऐसा क्या हो गया कि देश का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय प्रोटोकॉल के तहत भी अपने विजीटर यानि राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं कर पाया?
● आखिर क्यों हर राज्य विश्वविद्यालय के दीक्षांत में जरूरी रूप से शामिल होने वाली राज्यपाल महोदया ने इविवि के दीक्षांत में आने से सख्त मना कर दिया और वो भी तब जब वो इविवि की आधिकारिक रेक्टर भी है ? आश्चर्य और संदेश दोनों तब और गहराता है कि जब माननीय राज्यपाल महोदया इविवि के छोटे से उद्घाटन समारोह में बेशक शामिल होती हैं तो क्या कहीं कोई गहरी अवैधानिकता या अकादमिक अनियमितता तो उन्हें रोक नहीं रही?
● आखिर इतना ख्यातिलब्ध पुरा छात्र परिवार होते हुये भी क्यों इविवि को मानद उपाधि के लिए बालीवुड की ओर देखना पड़ा? आखिर क्यों नागरिकता कानून का विरोध करने वालों के 13 अगस्त को इविवि होने वाले मुशायरे में सम्मिलित होने में अड़चन पड़ने के बावजूद इविवि ने गुलज़ार के नाम पर पुर्नविचार नहीं किया?
● जब अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रशांत घोष के खुद के विभाग की पदक की पूरी सूची हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर दी गई हो तो ऐसे व्यक्ति की अनुशंसा पर गुलज़ार को मानद उपाधि के लिए क्यों चुना गया?
● आखिर एक लंबी जिरह के बाद जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दीक्षांत की पूरी पदक सूची को आधारहीन और निरस्त करने योग्य पाया तो क्या पदक निर्धारण की जांच करवाये बगैर दीक्षांत करवाना पदक विजेताओं का मजाक बनाना नहीं है?
● आखिर क्यों चांसलर पदकों को अंतिम दिन घोषित किया गया? क्या पदकों के लिए हुये साक्षात्कार पर आपत्तियों के निस्तारण में असमर्थ है इविवि?
● अगर द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए तीन माह पूर्व से ही जनमत संग्रह करवाया जा रहा है तो उसके आंकड़े और फीडबैक फार्म के पैमानों को पब्लिक डोमेन में घोषित किये बिना ऐन दीक्षांत के दिन किसी को द्रोणाचार्य घोषित करना अनैतिक, अलोकतांत्रिक और आम छात्रों के मतों का अपमान नहीं है ?
आखिर जिस मंत्रालय ने इविवि के प्रस्ताव को रोक दिया हो तो फिर क्या उसी के मुखिया से पदक बंँटवाना खुद अपनी ही अवहेलना करवाना भर नहीं है?
इसलिए जब उत्कृष्टता के मानक आधारहीन हो, आयोजन गैर न्यायोचित हो, और जनमानस में छवि अनैतिकता की हो तो वो अकादमिक समारोह और कुछ नहीं बस शौकीनों के तफरी का बाज़ार बन जाता है जहाँ अपने प्रचार के लिए छात्रों की नुमाइश की जाती है।
इससे कहीं बेहतर तो शिल्प हाट होते हैं, भले वहाँ बोली लगती हो लेकिन उत्कृष्टता का उचित मूल्यांकन तो होता ही है।
तो फिर 8 नवम्बर को आइये इविवि के प्रायोजित "शिल्प मेले" में।
नोट : छात्र द्वारा भेजे गए सवाल।