इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पिछले सप्ताह से ही एक नया मामला चल रहा है जिसमें मध्यकालीन व आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर विक्रम हरिजन को नोटिस जारी किया गया है। नोटिस इस बाबत जारी किया गया कि प्रोफेसर विक्रम ने दो साल पूर्व एक मीडिया से बात करते हुए कहा कि जाति देखकर छात्र-छात्राओ को परीक्षाओ में नंबर दिए जाते है। इस विषय पर दो साल बाद प्रोफेसर विक्रम को नोटिस जारी कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रमाण माँगा है। इस विषय पर हमारे टीम ने प्रोफेसर विक्रम से बात किया है और कुछ सवाल जवाब किए है आइए जानते है पूरे मामले पर क्या कहते है प्रोफेसर विक्रम हरिजन
व्यक्तिगत नही सामान्य अनुभव पर दिया था बयान -
प्रोफेसर विक्रम हरिजन ने बताया कि यह बयान उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय पर ही नही बल्कि सामान्य अनुभव पर दिया था। चूँकि हमने उच्च शिक्षा को पढा है और हमारे तमाम साथी, छात्र ए बात कहते थे और उनके साथ होता था और मेरे साथ भी ऐसा हुआ था। इसलिए हमने ऐसा कहा।
छात्र-छात्राओं व स्काॅलर छुपकर बताते थे अनुभव -
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 2013 में ज्वाइन किया। जबकि मेरा नाम डाॅ विक्रम हरिजन था लेकिन लोग हरिजन शब्द से आइडेनिटिफाई करते थे। तो यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्काॅलर चोरी चोरी आकर अपना अनुभव साझा करते थे और बताते थे कि मेरे साथ मेरे प्रोफेसर ऐसे करते है। स्नातक/परास्नातक के छात्र-छात्राओ का प्रैक्टिकल/इंटरव्यू में जाति देखकर अक्सर शिक्षक कम नंबर देते थे। बच्चे मुझे बताते थे और इसका मलाल था मुझे।
नाम से हरिजन हटा लिजिए नही बच्चे क्लास नही करेंगे -
हमारे डिपार्टमेंट के एक हेड थे, हमारे विभाग की एक मिटिंग हुई और कहा कि अगर मैं नाम लिखूँगा विक्रम हरिजन तो बच्चे क्लास नही करेंगे तो मैने कहा कि जो आप लिखना चाहे तो लिख सकते है तो मेरा नाम सिर्फ डाॅ विक्रम लिखा गया। आप इस बात की जांच करा सकते है जब मैने ज्वाइन किया था उस दौरान जो पहला सेड्यूल बना था टाइमटेबल। उस टाइमटेबल में नाम डाॅ विक्रम है विक्रम हरिजन नही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि पढने पढाने मे अच्छा रहा, ठीक ठाक प्रोफेसर रहा, बच्चे हमारा क्लास करने लगे। जो ए मिथ था कि बच्चे क्लास नही करेंगे कास्ट के नाम पर लेकिन क्लास मे एक टेंशन जरूर रहता था क्योंकि पढाने के दौरान कही न कही जाति व गरीबी की बात आ जाती थी तो इतिहास के माध्यम से बताता था मै। बच्चे पूछते थे कि किस बिरादरी से है। जानकर आश्चर्य होगा यहाँ तक कि मेरे खिलाफ एक शिकायत पहली बार गयी तत्कालीन वाइस चांसलर के पास उस कंप्लेन मेरा नाम डाॅ विक्रम नही डाॅ विक्रम हरिजन लिखा गया। ए सब छोटी छोटी घटनाए थी जो कि महसूस कराती थी जाति का कितना फिलिंग था विभाग या विश्वविद्यालय के अंदर।
मेरे कार्यक्रम को बताया चमारों का कार्यक्रम -
मैने दो नेशनल सेमिनार कराए थे। पहला सेमिनार था जो कि 37 साल बाद हुआ था। तय फिगर नही लेकिन लोग बताते है। पहला सेमिनार था लेदर वर्किंग काॅस्ट इन इंडिया। लेदर को लोग एकेडमिक भाषा न समझ कर चमार समझने लगे। डिपार्टमेंट में लोगो ने कहा कि ए तो चमारो का सेमिनार करा रहे है। साफ साफ कहा गया कि अतिथि चमार है और प्रोफेसर भी चमार है। इस तरह की बाते 2018 की सेमिनार मे हुयी। पहली घटना 2017 व दूसरी 2018 जब प्राॅब्लम ऑफ कास्ट पर हमने सेमिनार कराया तो उसमे दलित साहित्य पर एक सत्र रखा था। तो लोगो ने कहा कि हमने ब्राह्मणों को गाली खिलाने के लिए बुलाया है।
कार्यक्रम को फेल कराने के लिए लुटवाया खाना -
इतना तो गनिमत था पहले सेमिनार के दिन हमसे इतनी जलन हुई कि हाॅस्टल से लडको को बुलाकर खाना तक लूटवा लिया गया। इस पर मै बहुत दुखी हुआ क्योंकि मेरे जो गेस्ट आए थे वह खाना नही खा पाए थे। उसके बाद दूसरे दिन भी खाना लुटवाने की कोशिश की गयी तो हमने पुलिस कंप्लेन किया। हमारे तत्कालीन चीफ प्राॅक्टर को सूचना दिया तो उन्हे लगा कि मजाक कर रहा हूँ वो बोले ऐसा होता है तो मै बोला जी सर सीरियसली बच्चे लूट कर खा रहे तो प्राॅक्टर ने गंभीरता से लिया और हमारे एक प्रोफ़ेसर मित्र ने तुरंत एक लेटर लिखा कर्नलगंज थाने को तो पुलिस आयी तो पुलिस के निगरानी मे जो अवैध लोग खाना खा रहे थे उन्हे भगाया गया। फिर पुलिस के निगरानी मे गेस्ट को खाना खिलाया गया। इसका एविडेंस है।
ब्लैकमेल के लिए मेरा एक विडियो वायरल -
कुछ दिन बाद हमने नामजद कंप्लेन किया ए बात पुरानी थी। माहौल तनावपूर्ण हो गया लेकिन उसके बाद लोग मुझे ब्लैकमेल करने लगे मेरे पर्सनल लाइफ को लेकर ब्लैकमेल करने लगे। एक छात्र ने हमे ब्लैकमेल करने के लिए एक घटना घटी और एक विडियो अपलोड किया गया जो कि हिन्दू देवी देवताओ के खिलाफ था। उसके पीछे मेरा मंशा हिंदू देवी देवताओ का अपमान करना नही था। मेरा मंशा ए था कि दलित समाज के लोग साइंटिफिक रेसनालिटी आइडिया से पढाई करे और भगवान के भरोसे न रहे।
दो साल बाद यह मुद्दा फिर क्यो आया -
मुझे ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन या इन जनरल जो इलाहाबाद के सोशल व एकेडमिक आर्डर को महसूस होता है कि मै उनके सोसाइटी के लिए थ्रेट हूँ। उनके सोशल आर्डर व धर्म के लिए खतरा हूँ। बार बार मुझे इस बात का एहसास कराया जाता है। अब उन्हे लगता है कि मैने पीछले विडियो के लिए जब स्पष्टीकरण दिया था तो मैने उनसे कहा था कि मैने देवी देवताओ के अपमान का कोई उद्देश्य नही है फिर भी अगर किसी को लगता है तो मै सबसे माफी मांगता हूँ। जवाब मैने रजिस्ट्रार साहब को दे दिया। फिर भी मुझे लगता है इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जो मंडली है हमारे इस बात से संतुष्ट नही है और उन्हे अभी भी लगता है कि मै ठीक आदमी नही हूँ।
मुझे टर्मिनेट व इलिमिनेट करने की साजिश -
मेरी औकात बताने के लिए या कहिए मै दलित समाज का हूँ उसी को बताने के लिए इस तरह के नोटिस आते है। शायद यह एक बडी घटना की ओर इशारा करती है कि बार बार नोटिस जारी करने के बाद मुझे टर्मिनेट कर दिया जाए। कयी शो काॅज नोटिस के बाद इलिमिनेट व टर्मिनेट कर दिया जाए जो मुझे समझ मे आता है। पिछली घटनाओ के दौरान मेरे जान पर बन आयी थी। मेरा माॅब लिंचिंग करने का प्रयास किया गया था तो यूपी सरकार ने हमे गनर दिए थे। जब तक प्रयागराज SSP अनिरुद्ध पंकज से तब तक मिला। अब लोगो को लगता है कि विक्रम अकेले हो गए। मेरी गरीबी की हालात भी बुरे है मै बाइक से चलता हूँ। लोगो ने टिप्पणी किया कि चलते है बाइक से ख्वाहिश है गनर की। सोचिए कि इनको मेरी दशा पता है। लोगो को लगता है एक तो गरीब है दूसरा दलित है। इनके समाज के लोग साथ खडे नही होंगे तो इनको इलिमिनेट कर दिया तो एक बडे षड्यंत्र के तरफ इशारा है कि वो किसी न किसी माध्यम से या फिर संगठनो के माध्यम से मार देंगे या यूनिवर्सिटी से निकाल देंगे। इस तरह से तैयारी कर रहे या मुझे इतना परेशान कर दे प्रताड़ित होकर मै खुद रिजाइन कर दूँ।
नंबर तो छोटी बात है यहाँ तो जाति देखकर पद दी जाती है -
अंतिम बात पर बोलते हुए प्रोफेसर विक्रम हरिजन ने कहा कि नंबर तो छोटी बात है यहाँ तो नियुक्ति और पद भी कयी बार जाति देखकर दी जाती है। और ए मै नही कह रहा अभी कुछ दिन पहले भी छात्र-छात्राओ ने इस विषय को सोशल मिडिया पर चलाया था। अब आप इसका भी प्रमाण माँगिए। एक नजर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शीर्ष पदो पर दौडाइए दिख जाएगा कि जाति देखकर होता है कि नही। बाकि दलित जाति से आता हूँ तो परेशान करना लाजमी है पर गलत नही हूँ मै। जरूरत पड़ने पर SC/ST आयोग का दरवाजा भी खटखटाउँगा।