बिग ब्रेकिंग : ऑफलाइन परीक्षाओं के विरोध की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, ऐसी याचिका छात्र-छात्राओं को गुमराह करती है, जानिए पूरा निर्णय


SUPREME COURT : माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आज दिनांक 23 फरवरी 2022 को ऑफलाइन परीक्षाओं के विरोध में दायर की गयी याचिका को खारिज कर दिया है और याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार की याचिकाएँ छात्र-छात्राओं को गुमराह करती है और उन्हे झूठी आशाएं दिलाती है। आइए जानते है पूरा विमर्श

ऑफलाइन परीक्षाओं के विरोध में थी याचिका -

बताते चलें कि यह याचिका CBSE, ICSE, NIOS व सभी राज्य बोर्ड के दशवी व बारहवी के परीक्षाओं को ऑफलाइन माध्यम से न कराने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी थी और परीक्षाओं को शारीरिक रूप से न कराने की गुहार लगाई गयी थी। मामले में एडवोकेट प्रशांत पद्माभन ने परीक्षाओ को फिजिकल मोड (क्लासेज में बैठकर) परीक्षाएँ रद्द करने तथा अन्य मूल्यांकन पद्धति से परीक्षा का परिणाम तैयार करने की गुहार लगायी थी।

कोविड में पढाई न होने का भी दिया हवाला -

एडवोकेट प्रशांत पद्माभन ने पीठ के समक्ष यह भी कहा कि कोविड के समय से ही यह समस्याएँ बनी हुयी है। छात्र-छात्राओं की ऑफलाइन पढाई कोविड के सुधार के बावजूद भी नही करायी गयी है। याचिकाकर्ता ने यह भी यह कहा कि कक्षाँए ऑनलाइन माध्यम से आयोजित की गयी है इसलिए शारीरिक रूप से परीक्षा कराना उचित नही होगा। ऑफलाइन परीक्षाओं से छात्र-छात्राओं को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा तथा अपने परिणाम को लेकर तनाव मे भी आ सकते है। ऐसे स्थिति मे गंभीर परिणाम आने के भी आशंका है।

मानसिक दबाव का भी कारण -

याचिकाकर्ता अनुभा ने याचिका में यह भी लिखा है कि ऑफलाइन परीक्षाओ से छात्र-छात्राएँ दुखी है। तमाम तर्को के माध्यम से यह भी बताया कि यह सब मानसिक तनाव का कारण भी बनते है और छात्र-छात्राएँ खराब प्रदर्शन व असफलताओ के कारण गलत कदम भी उठाते है। ऐसे मे उन्हे पूर्व भी तरह अन्य वैकल्पिक माध्यम देकर परिणाम दिया जाए।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला -

बताते चलें कि सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत की गुहार स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाले पीठ को मामले की सुनवाई के लिए अग्रसारित कर दिया था। लेकिन आज इसे खारिज करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि इस प्रकार की याचिकाएँ छात्र-छात्राओं को गुमराह करती है और झूठी आशाएँ देती है। न्यायमूर्ति खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी व रविकुमार के पीठ ने कहा कि अधिकारी पहले से ही परीक्षाओं की तिथियों व अन्य पहलुओं पर काम कर रहे है। ऐसे मे पीड़ित पक्ष संवाद के लिए अधिकारियों से संपर्क कर सकते है।

सर्वोच्च न्यायालय का पहले का भी फैसला सुरक्षित -

ज्ञात हो कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय से परीक्षाओं को लेकर ही दायर याचिका में सुनवाई करते हुए 28 अगस्त 2020 को भी कहा था कि संस्थान चाहे तो परीक्षाएँ ले सकती है। हम उन्हे इस मामले में नही रोक सकते। माननीय न्यायालय ने यह भी कहा था कि "This is not the ground of Judicial Review."
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